प्रेरित करने वाले एक आदर्श व्यक्तित्व
पूज्य सदगुरुदेव युगपुरुष स्वामी परमानन्द जी महाराज की सरलता और साधारण रहन सहन को देख कर सहज ही विश्वास नहीं होता कि इनका चिन्तन इतना गहन और कर्मक्षेत्र इतना विस्तृत होगा। पूरा दिन और रात तक लोगों से घिरे रहते हैं। निरंतर होने वाले कार्यक्रमों की व्यस्तता के बीच में भी भक्तो को दर्शन करने का सौभाग्य मिल जाता है। भक्तों से मिलते जुलते उनका चिन्तन चलता रहता है। लोगों से बातचीत करते हुए मंच पर चले जाते हैं और उसी विषय पर प्रवचन कर देते हैं अपने विषय को समझाने की इतनी लगन है कि विश्राम का समय नहीं रहता। कार्य क्षेत्र इतना बड़ा है कि आज यहाँ तो कल वहाँ। अनेक आश्रमों, विद्यालयों,चिकित्सालयों, गौशालाओं की व्यवस्था के साथ भक्ति,योग, वेदान्त सम्मलेन पूरे भारत में तथा अब अमेरिका, ब्रिटेन, रूस आदि देशों में भी आयोजित होने आरंभ हो गए हैं।
वेशभूषा:- दुबला पतला शरीर, सफ़ेद दाढ़ी, सर्दियाँ हों या गर्मियाँ पूरे शरीर को एक लंबे चोगे से ढके रहते हैं और सिर को साफी से| कोमल पैरों में खूंटीदार भारी खुडाऊँ पहने रहते हैं और खटाखट चलते हैं और पहाड़ों तक चढ जाते हैं| उनके पास मानव मात्र के लिए करुणा से भरा हृदय है, नष्ट होती संस्कृति तथा गिरते जीवन मूल्यों को गहरी पीड़ा हृदय में लिए देश भर में शहर-शहर, गाँव-गाँव श्रोताओं की पात्रता-अपात्रता देखे बिना ,वह ऊँची विद्या जो जीवन लगाकर प्राप्त की है, लुटाते रहते हैं|
जन्म:- उत्तर प्रदेश को एक गाँव मवई में, एक सात्विक ब्राह्मण परिवार में, इनका जन्म हुआ| संस्कारों से संम्पन्न परिवारों से कर्मठता ,सच्चाई और ईमानदारी इनको विरासत में मिले|
गुरुदेव के सानिध्य में:- एक दिन चुपके से अपने परिवार को छोड़कर निकल पड़े और सदगुरुदेव (प्रातः स्मरणीय ब्रह्मलीन बालयोगी ,बाल ब्रह्मचारी श्री स्वामी अखण्डानन्द जी महाराज चित्रकूट वाले) की शरण में आ गए| यहाँ से ,इनके कठोर तपोमय जीवन का आरम्भ हुआ| चौबीस घंटे में केवल चार घंटे सोना ,वह भी बैठे-बैठे, गुरुदेव की कठोरता के पीछे जो उनका स्नेह था , वह आज भी उनकी चर्चा करते हुए महाराज श्री की आंखों से छलक जाता है|
ध्यान में चमत्कार:- पूर्ण युवावस्था थी ,सारी उर्जा साधना में लग गई| ध्यान में आनंन्द में डूबे रहते| कई चमत्कार हुए, खुली आँखों भगवान राम-लक्ष्मण के दर्शन हुए| लुधियाना के इलाइची गिरि मंदिर में हुए ध्यान कें चमत्कार की बात, साधकों को प्रेरणा देने के लिए सुनाया करते हैं|
वरिष्ट संतों का प्रेम:- प्रातः स्मरणीय ब्रह्मलीन वामदेव जी महाराज ने एक बार उनका प्रवचन सुन कर कहा कि ऐसा लगता है कि अभी समाधि से उठे हैं| ब्रह्मलीन पूज्य निर्मल जी महाराज जो वेदांत केसरी के नाम से जाने जाते थे इन पर विशेष प्रेम रखते थे| परमपूज्य ब्रह्मलीन स्वामी हरिगिरी जी महाराज , परमपूज्य ब्रह्मलीन स्वामी अखण्डानन्द जी सरस्वती एवं ब्रह्मलीन स्वामी हरमिलापी जी महाराज इन पर विशेष स्नेह रखते थे|
कर्मक्षेत्र में उतरना:- जब बुद्धि सत्य में प्रतिष्ठित हो जाये , मन का लय हो जाये , मात्र शरीर की आवश्कताओं के लिए ही संसार से जुड़ा रहना शेष रह जाये तब ऋतंम्भरा बुद्धि के शुभ संकल्पों के लिए मन को खड़ा करके काम लेना , खरे सोने से आभूषण बनाने जैसा कठिन काम है| गोरक्षा आन्दोलन में जेल में गए| वहाँ ब्रह्मलीन परम पूज्य स्वामी गीता नन्द जी महाराज ‘भिक्षु’ एवं ब्रह्मलीन पूज्य हरमिलापी जी आदि संतों के साथ मिलकर इन्होने गोशाला खोलने का संकल्प लिया और जेल से बाहर आने के बाद ग्राम व पोस्ट सिजई जिला छत्तरपुर (म.प्र.) में ‘ सर्वतोमुखी विकास संस्थान ‘ के नाम से 125 एकड जमीन लेकर गोशाला एवं विद्यालय प्रारभ किया|भक्तों के आग्रह , अनुरोध पर हरिद्वार में आश्रम बनवाया , फिर तो आश्रमों ,विद्यालयों ,चिकित्सालयों का सिलसिला शुरू हुआ वह अभी तक जारी है| विद्यालय और चिकित्सालय अधिकत्तर पिछडे क्षेत्रों में हे बनवाये| जिन का खर्च प्रवचनों से मिली दक्षिणा से चलता है|
प्रकाशन:- महाराज श्री के अमूल्य प्रवचनों को केसेट में भरने तथा लिपिबद्ध करने का काम स्वर्गीय प्रेम नारायण सक्सेना जी के घर सर आरम्भ हुआ| आज अनेक पुस्तकें हिन्दी तथा अंग्रेजी में उपलब्ध हैं| मासिक पत्रिका “ युग निर्झर “ भी पूरे देश तथा विदेशों में पहुंचायी जा रही है|
शिष्य मण्डल:- महाराज श्री के आदर्श भगवान श्री कृष्ण हैं| महाराज श्री कहा करते हैं “ भगवान श्री कृष्ण के उद्गार ही उनके प्रवचन हैं| भगवान श्री कृष्ण कि तरह ही इन्होने भी कई अर्जुनों को कर्म क्षेत्र में उतारा है| परम पूज्य साध्वी ऋतंम्भरा जी ( दीदी माँ ) तो पूरे देश में श्रीमद्भागवत का अमृत बाँट रही हैं , साथ हे वात्सल्यमयी माँ के रूप में परित्यक्त बच्चों के लिए वात्सल्य मंदिर से वात्सल्य ग्राम तक निर्माण करवा रही हैं| पूज्य श्री के लगभग200 सन्यासी शिष्य पूरे भारत में विभिन्न प्रकल्प चला रहे हैं| अनेक आश्रमों में तपस्वी सन्यासी व्यवस्थाएं देख रहे हैं| बहुत से गृहस्थ शिष्य भी वीतराग होकर सेवा कार्यों में लगे हैं|
महाराज की कुछ विशेषताएँ हैं, जिनके कारण पूज्यश्री दूसरे महापुरुषों से अलग हैं|
ज्ञान सम्बन्धी:- वेदान्त जैसे झीने विषय को व्यव्हार के साथ समन्वय कर के , दोनों को साथ-साथ लेकर प्रवचन करना , जिससे प्रत्येक साधक अपने-अपने स्तर से लाभ प्राप्त कर लेता है| वेदान्त और भक्ति का संतुलित समन्वय भी इनकी विशेषता है| पूर्ण निष्ठ हुए बिना , पूजा अर्चना छोड देने वाले साधकों को झिझोड़कर सन्मार्ग पर लाते हैं| पूज्यश्री समझाते हैं ‘ज्ञान वह नहीं है जो समाज से अलग-थलग कर दे| ज्ञान प्राप्ति के बाद कर्मक्षेत्र में उतरना आवश्यक है| पूज्यश्री कहते हैं कि ‘ अपना काम पूरा करके ही सच्चे अर्थों में समाज का काम किया जा सकता है|
‘पूज्यश्री कहते हैं – श्रुति भगवती माँ है , जैसे माँ बालक को ऊँगली पकडकर चलना सिखाती है ,कोई वस्तु थोड़ी दूरी पर रखकर चलने को प्ररित करती है ऐसे हे श्रुति भगवती हमें धीरे-धीरे ईश्वर तक ले चलती है| महाराज श्री शास्त्रों के कठिन उदाहरणों को सरल करके समझाते हैं| साफी की गाँठ से वेदान्त को समझाते हुए जीव-ब्रह्म ,जीव-जीव ,गुरु-शिष्य के भेद को स्पष्ट कर भ्रम निवारन् कर देते हैं|
राष्ट्र सम्बन्धी:- हमें जागरूक नागरिक बनने कि प्रेरणा देते हैं ताकि हम अच्छी सरकार बनाए| वे हमें राष्ट्र के हितों के सामने अपने हितों को तुच्छ मानकर जीना सिखाते हैं| वे कहते हैं कि जिस पद पर भी हो वहाँ पूरी ईमानदारी ,पूरी शक्ति से काम करो| यही राष्ट्र की सच्ची सेवा है| कर्त्तव्य पालन में प्रमाद के लिए सरकारी कर्मचारियों , यहाँ तक कि सन्यासियों को भी झकझोरते रहते हैं|
समाज सम्बन्धी:- पूज्य श्री कहते हैं “ घरों में प्रेम का वातावरण और बड़े-बूढों के प्रति सम्मान कि भावना रखो|”वह सुख जो आज तक तुम संतों के चरण छूकर प्राप्त करते हो , वह तुम्हें घर के बड़े-बूढों के पैर छूकर भी मिल जाता है| बड़े-बूढों को भी चाहिए कि वे स्वयं को दूसरों के लिए उपयोगी बनाएँ| हरिभजन में मन लगाने से मन शान्त रहता है|
समाज में भारतीय संस्कृति पुनः प्रतिष्ठित हो सके तथा ऋषियों की अमूल्य देन के प्रति समाज आस्थावान बनकर सुखी हो , इसके लिए अथक प्रयास में लगे रहते हैं|
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